रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज 98वां दिन
Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई और 2 दोहा अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रहा हैं। हम रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई और 2 दोहा लेकर आ रहे हैं । वही उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 10 चौपाईयां | Today 10 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
पितु सुरपुर सिय रामु बन करन कहहु मोहि राजु।
एहि तें जानहु मोर हित कै आपन बड़ काजु॥177॥
भावार्थ-पिताजी स्वर्ग में हैं, श्री सीतारामजी वन में हैं और मुझे आप राज्य करने के लिए कह रहे हैं। इसमें आप मेरा कल्याण समझते हैं या अपना कोई बड़ा काम (होने की आशा रखते हैं)?॥177॥
चौपाई
हित हमार सियपति सेवकाईं। सो हरि लीन्ह मातु कुटिलाईं॥
मैं अनुमानि दीख मन माहीं। आन उपायँ मोर हित नाहीं॥1॥
भावार्थ-मेरा कल्याण तो सीतापति श्री रामजी की चाकरी में है, सो उसे माता की कुटिलता ने छीन लिया। मैंने अपने मन में अनुमान करके देख लिया है कि दूसरे किसी उपाय से मेरा कल्याण नहीं है॥1॥
सोक समाजु राजु केहि लेखें। लखन राम सिय बिनु पद देखें॥
बादि बसन बिनु भूषन भारू। बादि बिरति बिनु ब्रह्मबिचारू॥2॥
भावार्थ-यह शोक का समुदाय राज्य लक्ष्मण, श्री रामचंद्रजी और सीताजी के चरणों को देखे बिना किस गिनती में है (इसका क्या मूल्य है)? जैसे कपड़ों के बिना गहनों का बोझ व्यर्थ है। वैराग्य के बिना ब्रह्मविचार व्यर्थ है॥2॥
सरुज सरीर बादि बहु भोगा। बिनु हरिभगति जायँ जप जोगा॥
जायँ जीव बिनु देह सुहाई। बादि मोर सबु बिनु रघुराई॥3॥
भावार्थ-रोगी शरीर के लिए नाना प्रकार के भोग व्यर्थ हैं। श्री हरि की भक्ति के बिना जप और योग व्यर्थ हैं। जीव के बिना सुंदर देह व्यर्थ है, वैसे ही श्री रघुनाथजी के बिना मेरा सब कुछ व्यर्थ है॥3॥
जाउँ राम पहिं आयसु देहू। एकाहिं आँक मोर हित एहू॥
मोहि नृप करि भल आपन चहहू। सोउ सनेह जड़ता बस कहहू॥4॥
भावार्थ-मुझे आज्ञा दीजिए, मैं श्री रामजी के पास जाऊँ! एक ही आँक (निश्चयपूर्वक) मेरा हित इसी में है। और मुझे राजा बनाकर आप अपना भला चाहते हैं, यह भी आप स्नेह की जड़ता (मोह) के वश होकर ही कह रहे हैं॥4॥
दोहा
कैकेई सुअ कुटिलमति राम बिमुख गतलाज।
तुम्ह चाहत सुखु मोहबस मोहि से अधम कें राज॥178॥
भावार्थ-कैकेयी के पुत्र, कुटिलबुद्धि, रामविमुख और निर्लज्ज मुझ से अधम के राज्य से आप मोह के वश होकर ही सुख चाहते हैं॥178॥
चौपाई
कहउँ साँचु सब सुनि पतिआहू। चाहिअ धरमसील नरनाहू॥
मोहि राजु हठि देइहहु जबहीं। रसा रसातल जाइहि तबहीं॥1॥
भावार्थ-मैं सत्य कहता हूँ, आप सब सुनकर विश्वास करें, धर्मशील को ही राजा होना चाहिए। आप मुझे हठ करके ज्यों ही राज्य देंगे, त्यों ही पृथ्वी पाताल में धँस जाएगी॥1॥
मोहि समान को पाप निवासू। जेहि लगि सीय राम बनबासू॥
रायँ राम कहुँ काननु दीन्हा। बिछुरत गमनु अमरपुर कीन्हा॥2॥
भावार्थ-मेरे समान पापों का घर कौन होगा, जिसके कारण सीताजी और श्री रामजी का वनवास हुआ? राजा ने श्री रामजी को वन दिया और उनके बिछुड़ते ही स्वयं स्वर्ग को गमन किया॥2॥
मैं सठु सब अनरथ कर हेतू। बैठ बात सब सुनउँ सचेतू॥
बिन रघुबीर बिलोकि अबासू। रहे प्रान सहि जग उपहासू॥3॥
भावार्थ-और मैं दुष्ट, जो अनर्थों का कारण हूँ, होश-हवास में बैठा सब बातें सुन रहा हूँ। श्री रघुनाथजी से रहित घर को देखकर और जगत् का उपहास सहकर भी ये प्राण बने हुए हैं॥3॥
राम पुनीत बिषय रस रूखे। लोलुप भूमि भोग के भूखे॥
कहँ लगि कहौं हृदय कठिनाई। निदरि कुलिसु जेहिं लही बड़ाई॥4॥
भावार्थ-(इसका यही कारण है कि ये प्राण) श्री राम रूपी पवित्र विषय रस में आसक्त नहीं हैं। ये लालची भूमि और भोगों के ही भूखे हैं। मैं अपने हृदय की कठोरता कहाँ तक कहूँ? जिसने वज्र का भी तिरस्कार करके बड़ाई पाई है॥4॥