मध्य प्रदेश पेशाब कांड: ‘वो मैं नहीं’… तो फिर असली दशमत रावत कौन?
सवाल यह है कि अगर वीडियो में दिख रहा व्यक्ति पीड़ित दशमत नहीं था तो सीएम हाउस में सम्मानित हुआ दशमत कौन है? अगर ये ‘वो’ दशमत नहीं है तो असली दशमत कौन है और अब वो कहां है? वह खुद न्याय मांगने सामने क्यों नहीं आ रहा है या फिर उसे आने नहीं दिया जा रहा है? असली पीड़ित युवक का नाम दशमत ही है या कुछ और?
अजय बोकिल
प्रसिद्ध मराठी नाटककार लेखक आचार्य अत्रे का एक मशहूर नाटक है- ‘तो मी नव्हेच’ यानी ‘मैं वो नहीं।’ मध्यप्रदेश की बदनामी करने वाले सीधी पेशाब कांड से चर्चा में आए पीड़ित आदिवासी दशमत रावत को लेकर जो नया ‘वीडियो वाॅर ‘छिड़ा है, उससे भी बात यही उठ रही है कि अगर ‘वो मैं नहीं तो फिर असली ‘वो’ कौन है, जिस पर एक उन्मत्त सवर्ण ने पेशाब कर इंसानियत को तार-तार किया?
क्या असली पीड़ित अभी भी लापता है? अगर ‘वो’ लापता है तो जिसके चरण पखारे गए, वो मुख्यमंत्री निवास कैसे और किसके जरिए पहुंचा? और यदि सब कुछ ठीक है तो ‘वो मैं नहीं’ का पेंच क्यों फंसा? दरअसल सीधी के पेशाब कांड के राजनीतिक नफे-नुकसान से परे इस बेहद शर्मनाक प्रकरण में नए मोड़ आते जा रहे हैं।
हर सभ्य इंसान को उद्वेलित करने वाले कांड में एक समांतर वीडियो वाॅर भी जारी है। पेशाब कांड के पीड़ित आदिवासी दशमत रावत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उसके पैर पखारे जाने के बाद कथित तौर पर बयान दिया कि इस कांड के वीडियो में जो दशमत दिखा है, वह मैं नहीं हूं। लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद एक और वीडियो वायरल हुआ कि जी, हां जातीय नफरत का मारा मैं ही वो दशमत हूं। अगर वीडियो में दिखा दशमत भी बाद वाला दशमत ही है तो उसने भ्रमित करने वाला बयान क्यों दिया?
असली दशमत कौन? यह अब भी रहस्य
अब सही क्या है, यह अभी भी रहस्य है, जो या तो उस पीड़ित आदिवासी दशमत को पता है या सरकारी हशमत को? जिस तरह और जिस मकसद से दो साल पहले शूट हुआ यह वीडियो चुनावी चौपाल के मंगलाचरण में वायरल हुआ, वह कई सवाल खड़े करता है। इस पूरे मामले में निकृष्ट मानसिकता की पराकाष्ठा तो है ही, साथ में मानवीय संवेदना का मखौल, ब्लैकमेलिंग और राज्य में चुनाव के मुहाने पर इसके वायरल होने के पीछे की नीयत भी है।
अव्वल तो कोई भी व्यक्ति, किसी पर पेशाब करे, फिर चाहे वह किसी जाति धर्म का क्यों न हो, इससे ज्यादा घिनौना कृत्य कल्पनातीत है। क्योंकि इसमें क्रूरता भले न हो, मानवीय गरिमा को रौंदने का पैशाचिक जरूर भाव निहित है। दूसरे, मप्र के सीधी के कुबरी बाजार पेशाब कांड में ‘तत्काल न्याय’ की सोच से संभावित सियासी नुकसान पर फिल्टर लगाने और मानवीय गरिमा को बचाने की कोशिशें जरूर हुई, लेकिन इसके कई पहलू अभी शंका के घेरे में हैं।
वायरल वीडियो पर भरोसा करें तो उसमें भाजपा ( बाद में इसका खंडन किया गया) का वह जाति से ब्राह्मण कार्यकर्ता, एक निरीह और निर्विकार से लगने वाले आदिवासी युवा पर पेशाब कर रहा है, लेकिन पीड़ित युवक के शरीर में कोई हलचल या विरोध होता नहीं दिखता। वरना आदिवासी ही क्यों, कोई भी व्यक्ति ऐसी पाशविकता पर तुरंत अपने ढंग से रिएक्ट करेगा और करना भी चाहिए।
बड़ा सवाल- सबकुछ क्यों सहता रहा पीड़ित?
पीड़ित का उस वक्त रिएक्ट न करना दो ही स्थितियों में संभव है या तो वह भारी नशे में हो या फिर विक्षिप्त हो, जिसकी सामान्य संवेदनाएं भी सुप्त हो गई हों। उसे एहसास ही न हो कि उसके साथ जो हो रहा है, वह मानवता का शायद सबसे बड़ा पाप है। जिस आदिवासी युवक पर जातीय और सत्ता के अहंकार में उच्च वर्णीय युवक ने पेशाब की वह ‘दशमत’ ही है, यह हमें प्रशासन ने बताया और इसका आधार स्थानीय लोगों से मिला फीडबैक रहा होगा। जबकि मीडिया की जांच रिपोर्टों में यह भी सामने आ रहा है कि इस वायरल वीडियो को बनाने के पीछे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और एक दूसरे को ब्लैकमेल करने की नीयत भी थी, जिसमें इंसानियत का चीरहरण हुआ।
अब सवाल यह है कि अगर वीडियो में दिख रहा व्यक्ति पीड़ित दशमत नहीं था तो सीएम हाउस में सम्मानित हुआ दशमत कौन है? अगर ये ‘वो’ दशमत नहीं है तो असली दशमत कौन है? और अब वो कहां है? वह खुद न्याय मांगने सामने क्यों नहीं आ रहा है या फिर उसे आने नहीं दिया जा रहा है? असली पीड़ित युवक का नाम दशमत ही है या कुछ और?
क्या मानसिक विक्षिप्त था पीड़ित?
एक बात और, जब पेशाब कांड का वीडियो वायरल हुआ तो एक बात कही गई थी कि जिस पर पेशाब की गई, वह युवक विक्षिप्त है। शुरुआत में इसे इस बुनियाद पर सही माना गया कि थोड़ी सी भी चेतना रखने वाला कोई इंसान उस पर पेशाब करने वाले को कुछ तो सबक सिखाता। कम से कम अपनी आबरू बचाने भागता तो सही। वरना कोई खुद पर किसी को पेशाब करने की इजाजत कैसे दे सकता है?
(यहां ‘सभ्य समाज’ के हाल में घटे उन वाकयों को याद करें, जिनमें विमान यात्री द्वारा शराब के नशे में पेशाब की गई और ऐसे मामले अमूमन छुटपुट दंड और चेतावनी के बाद निपटा दिए गए क्योंकि उसमें कोई सियासी एंगल नहीं था)।
दूसरी बात, वायरल हुए पहले वीडियो में पीड़ित युवक का हुलिया भी सामने आए दशमत से अलग दिखता है। मुख्यमंत्री निवास में जो दशमत दिखा, वो पूरे होशोहवास में और एक सामान्य सभ्य नागरिक की तरह पेश आ रहा था। साथ वो प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री द्वारा उसके चरण धोने से हतप्रभ भी था। लेकिन जब उसी दशमत से यह पूछा गया कि उस पर पेशाब करने वाले पर वह किस तरह की कार्रवाई चाहता है तो दशमत ने जवाब दिया कि वह कोई कार्रवाई नहीं चाहता। आशय यह कि जिसने यह किया, वह गांव का पंडित है, देवता समान है। देवताओं की ‘गलती’ तो उनकी लीला का भाग है। उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए। इस लिहाज से दशमत ने शायद ‘क्षमा बड़ेन को चाहिए’ की तर्ज पर सीएम से भी ज्यादा बड़ा दिल दिखाया। यही नहीं मुख्यमंत्री ने जब दशमत की पत्नी से पूछा कि अब वह क्या चाहती है तो उसने भी सिर्फ इतना कहा कि आप तो बस मेरे पति को वापस भेज दो। यानी गरीब को कहां रजधानी सो काम? यानी हमें किसी झंझट में नहीं पड़ना।
दशमत की पत्नी की बातों में सदियों की वह लाचारी भी बोल रही थी कि हम बदला लेकर भी शायद इज्जत से नहीं जी सकेंगे, क्योंकि शोषण और अपमान हमारी नियति है। आप हमें हमारे भाग्य पर छोड़ दें। दशमत की पत्नी को यह भी नहीं पता कि भारतीय संविधान की उद्देशिका में ही मानवीय गरिमा और सम्मान को कायम रखने की गारंटी है।
नए बयान ने बदल दी मामले की दिशा
दूसरी तरफ राजधानी से ससम्मान घर लौटे दशमत का एक नया वीडियो वायरल हुआ कि वो (पीड़ित) तो मैं था ही नहीं। इसमें हैरानी का अनकहा भाव भी था कि जब मेरे साथ कुछ हुआ ही नहीं तो फिर यह मान सम्मान किस लिए? सम्मान प्राप्त करने मुझे राजधानी भोपाल भेजा गया या फिर यह भी कोई नया ‘खेल’ है? लेकिन इस वीडियो के वायरल होने के कुछ समय बाद ही या तो कहीं से दबाव पड़ा या फिर दशमत को खुद इलहाम हुआ कि ‘हां, वो मैं ही था।‘
दशमत ने यह सफाई भी दी कि जब पेशाब कांड का पहला वीडियो शूट हुआ तब मेरा हुलिया अलग था। बाल लंबे थे। उस रात जो घटा वो शराब के नशे में हुआ। यानी कि जिस पर पेशाब की गई और जिसने पेशाब की, दोनों ही नशे में थे। (फर्क इतना था कि पेशाब करने वाले के भीतर श्रेष्ठता का झूठा अहंकार था, जबकि जिस पर पेशाब हुई, उसमें एक निरीह लाचारी थी।)
मनोविज्ञान की बात करें तो नशे में अपमान या तो घुल जाता है या फिर राक्षस बन कर कहर बरपाता है। मुमकिन है कि दशमत ने शायद यह सोचा हो कि उसके साथ जो हुआ या जो किया गया, उसका अब क्या रंज मनाना। बाद में जब भी उसे होश आया होगा, तब एहसास हुआ होगा कि कोई उस पर नहीं बल्कि समूची मानवता पर ही पेशाब कर गया है। लेकिन वो असली दशमत राजनीति के बियाबान में कभी सामने आ सकेगा, इसकी संभावना कम है।
अलबत्ता वायरल वीडियो में जो हुआ, जो दिखा और जो महसूस किया गया वो समूचे मानव समाज को उद्वेलित और व्यथित करने वाला है। इसका अंजाम विधानसभा चुनाव नतीजों में दिख सकता है, क्योंकि विंध्य में इस ‘पेशाब कांड’ के बाद नए किस्म की जातीय गोलबंदी भी शुरू हो गई है।
वरिष्ठ संपादक
राइट क्लिक ( ‘सुबह सवेरे’)
डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए उज्जवल प्रदेश उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें ujjwalpradeshamp@gmail.com पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।