मीरा रोड हत्याकांड: मानवता की सारी हदें पार, सुनकर शैतान के भी रोंगटे खड़े हो जाएं

यहां बात केवल प्रेम की जघन्य हत्या भर की नहीं है, बल्कि मनुष्यता को भी तिलांजलि देने की है। ऐसी तिलांजलि, जिसमें अफसोस और पश्चाताप के लिए कोई जगह नहीं है। लगभग सभी मामलो में यह देखने में आ रहा है कि ऐसा पैशाचिक कृत्य करने के बाद कहीं कोई आत्मग्लानि का भाव नहीं है। जो करना था सो कर दिया।

अजय बोकिल
बीते साल मई में दिल्ली के श्रद्धा वालकर हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। तब उस क्रूरता को धार्मिक चश्मे से देखने की कोशिश की गई थी। लेकिन मुंबई के मीरा रोड हत्याकांड का भयावह संदेश यह है कि मनुष्य के रूप में 21वीं सदी में पिशाचों को भी लजाने में लगे हैं। क्रूरता, निष्ठुरता, निर्ममता, संवेदनशून्यता और पैशाचिकता जैसे अनेक शब्दों को एक ग्राइंडर में घुमाया जाए तो शायद वही कुछ बनेगा, जो मीरा रोड हत्याकांड में आरोपी ने लिव इन महिला पार्टनर के साथ किया है।

ये घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि युवा पीढ़ी में दिनो-दिन लोकप्रिय हो रही ‘लिव इन रिलेशनशिप’ का हासिल क्या है? Ajay Bokilकुत्ते की मौत से भी बदतर मौत और मौत के बाद चार कंधे भी मिलना। महज एक साल के भीतर देश के विभिन्न हिस्सों में अमानवीय क्रूरता की आधा दर्जन से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं, जिनको देखकर लगता है कि हम मनुष्य के रूप में सभ्य होने के बजाए राक्षसों से निकृष्टता की होड़ कर रहे हैं। इन घटनाओं को देखकर मानो शैतानों के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। ज्यादातर ऐसे मामलों में क्रूर एक पुरुष है और शिकार महिला है।

एक के बाद एक दिल दहला देने वाली घटनाएं

मीरा रोड हत्याकांड में जो शुरुआती जानकारियां सामने आ रही हैं, उससे लगता है कि कोई ठंडे खून वाला व्यक्ति ही यह सब कर सकता है। इस प्रकरण में मनोज साने नाम के शख्स ने अपने से काफी कम उम्र की लिव-इन पार्टनर सरस्वती वैद्य की हत्या कर दी और उसके शरीर को कटर से टुकड़ों में काटा, फिर प्रेशर कुकर में पकाया। फिर मिक्सर में पीसकर उन टुकड़ों को ठिकाने लगाने की कोशिश की। घर में महिला के शरीर के कई हिस्से बाल्टियों में ऐसे रखे हुए मिले, मानो रसोई के लिए तैयार किया गया झोल हो। जब पड़ोसियों को दुर्गंध आई तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। पता चला महिला की हत्या दो तीन दिन पहले की गई थी।

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इसके पूर्व श्रद्धा वालकर केस में मृतका श्रद्धा के लिव इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला ने श्रद्धा को मारा फिर तेज चाकू से उसके 35 टुकड़े किए। फिर धीरे-धीरे कर श्रद्धा के शरीर के टुकड़े छतरपुर और महरौली के जंगलों में फेंक आया। मानकर कि टुकड़ों में बंटा और जंगलों में बिखरा श्रद्धा का शरीर अपनी हत्या की कहानी किसी को बयान नहीं कर पाएगा। हालांकि बाद में आफताब पकड़ा गया। उसने अपराध कबूल भी किया। लेकिन जो किया, उस पर रत्ती भर भी अफसोस नहीं था। अपनी लिव इन पार्टनर की उसकी निगाह में इतनी ही कीमत थी।

श्रद्धा वालकर हत्याकांड की सिहरन कम भी नहीं हुई थी कि राजस्थान के जयपुर में 64 साल की एक विधवा बुजुर्ग महिला सरोज शर्मा को उसके इंजीनियर भतीजे अनुज शर्मा ने आफताब स्टाइल में ही मौत के घाट उतार दिया। पहले महिला के शरीर को बकरे की माफिक मार्बल कटर से काटा और फिर जिस्म के 10 टुकड़े करके दिल्ली जयपुर हाईवे पास जंगल में फेंक दिएय। भतीजा इस बात से नाराज था कि चाची उसे टोकती रहती थी।

जयपुर निर्मम हत्याकांड की स्याही सूखी भी नहीं थी कि झारखंड में साहिबगंज जिले के बोरियो इलाके में प्रेमी दिलदार अंसारी ने प्रेमिका पहाडि़या युवती की हत्या कर शव के 30 से ज्यादा टुकड़े कर डाले। सबूत छिपाने के लिए उसने टुकड़ों को बोरों में भर दिया। प्रेमिका के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए निष्ठुर प्रेमी ने लोहा काटने वाली मशीन का इस्तेमाल किया था। युवती की हत्या का पता तब चला जब बोरे में बंद शव के कुछ हिस्से कुत्ते खींचकर खा रहे थे।

इसी तरह गाजियाबाद में पीएचडी कर रहे छात्र की उसी के मकान मालिक उमेश ने रुपये के लालच में हत्या कर दी थी। उमेश ने किराएदार अंकित से बिजनेस के लिए 60 लाख रु. उधार लिए थे। ये पैसे लौटाने न पड़े इसलिए उसने किराएदार को ही ठिकाने लगा दिया। यहां भी आरोपी ने शव के कई टुकड़े किए और उन्हें अलग नहर में फेंक दिया। उसे भी भ्रम था शव के टुकड़े हत्या के सबूत न देंगे।

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ऐसा ही एक मामला आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टन में हुआ। जब एक बंद मकान में एक ड्रम में महिला के शरीर के अंगों के टुकड़े भरे मिले। मकान किराए पर था। साल भर से किराया न मिलने पर मकान मालिक ने दरवाजा तोड़ा तो भीतर ड्रम में सड़ी लाश मिली। पुलिस को शक था कि यह हत्या महिला के पति ने ही की थी और वह साल भर पहले गायब हो गया।

दिल्ली में श्रद्धा मर्डर केस के कुछ दिनों बाद पांडव नगर में एक और ऐसी ही वारदात हुई थी, जिसमें मां पूनम दास और बेटे दीपक ने मिलकर पिता अंजन दास की हत्या कर डाली। फिर शव को काटकर फ्रिज में रख दिया। बेटा रोज रात को शहर के अलग-अलग हिस्सो में टुकड़ों को फेंक आता था ताकि किसी को इस खौफनाक कत्ल का सुराग न लगे।

क्रूरता की सारी हदें पार

इन तमाम घटनाओं में समानता यह है कि हत्या का तरीका न केवल लगभग एक सा है बल्कि वह समय के साथ ज्यादा क्रूरतम होता जाता है। इतनी क्रूर कि कहने में भी जबान लड़खड़ाए। यूं हत्याएं मानव सभ्यता के पहले से होती आई हैं। क्रूरताएं भी नई नहीं हैं। वो कभी धार्मिक, कभी सत्ता की लड़ाइयों तो कभी जर-जोरू और जमीन के कारण भी होती रही हैं। मध्यकाल में जीवित मनुष्य के शरीर को बतौर सजा- काटना, जलाना, कुचलना असामान्य बात नहीं थी।

आज भी इसे लोग तालिबानी सजा कहते हैं। लेकिन यहां जिन घटनाओं का जिक्र है, उनमें से ज्यादातर मामलों में प्रेम की दुर्दांत परिणति हैं। चाहे श्रद्धा वालकर हो या सरस्वती वैद्य, वो शायद कभी नहीं समझ पाईं कि उन्होंने पुरूष के रूप एक मनुष्य को नहीं जीवित पिशाच को पार्टनर चुना है। समझना मुश्किल है कि आप जिससे जीते जी प्रेम करते हों, जिसके बिना जीना दूभर हो, उसी को मारने के लिए घृणा और निष्ठुरता के नए व निकृष्ट पैमाने कायम करने में संकोच कैसे नहीं करते? यहां बात केवल प्रेम की जघन्य हत्या भर की नहीं है, बल्कि मनुष्यता को भी तिलांजलि देने की है। ऐसी तिलांजलि, जिसमें अफसोस और पश्चाताप के लिए कोई जगह नहीं है। लगभग सभी मामलो में यह देखने में आ रहा है कि ऐसा पैशाचिक कृत्य करने के बाद कहीं कोई आत्मग्लानि का भाव नहीं है। जो करना था सो कर दिया।

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अमानुष और स्वार्थी होता जा रहा है इंसान

सोचने की बात यह है कि तकनीकी क्रांति के इस युग में हम एक मनुष्य के रूप में कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं और कितना गिर रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है? किन कारणों से हो रहा है और इसकी सीमा क्या है? विडंबना यह है कि दुनिया की आबादी बढ़ती जा रही है, लेकिन मनुष्य और ज्यादा अकेला, और ज्यादा अमानुष तथा और ज्यादा स्वार्थी होता जा रहा है।

श्रद्धा वालकर केस में आफताब ने उसके शरीर को काटकर टुकड़ों में यहां वहां फेंका। सरस्वती मर्डर तक यह शरीर के टुकड़ों को कुकर में पकाने तक आ पहुंचा है। आश्चर्य नहीं कि हमें अगली किसी ऐसी घटना में प्रियकर की क्रूर हत्या की उत्तर क्रिया किसी और घृणित रूप में होती दिखे। हैरानी इस बात की है कि ऐसी घटनाओं को साम्प्रदायिक अथवा पुलिस फेलियर का रंग तो आसानी से दे दिया जाता है, लेकिन इस बात पर चर्चा शायद ही होती है कि हम इतने राक्षस क्यों होते जा रहे हैं?

समाज की यह चुप्पी या फिर हैरत भरी उदासीनता भी उतनी ही खतरनाक है, जितनी कि हाॅरर फिल्म को पीछे छोड़ने वाली शैतानी कत्ल की घटनाएं। मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि ‘अंतिम त्रासदी यह नहीं है कि बुरे लोग जुल्म और क्रूरता करते हैं, बल्कि यह है कि ऐसी घटनाओं पर अच्छे लोग खामोश रहते हैं।‘

वरिष्ठ संपादक
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