मुफ्त योजनाओं का बढ़ता जाल, Supreme Court की चिंता और राज्यों की सियासत
Supreme Court: भारत में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाओं का ऐलान चुनावी रणनीति बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए इसे अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है। राज्यों पर बढ़ते वित्तीय भार और मतदाताओं के मनोविज्ञान पर इसका क्या असर हो रहा है? जानिए पूरी खबर।

Supreme Court: उज्जवल प्रदेश डेस्क. चुनावी मौसम आते ही राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में मुफ्त योजनाओं की भरमार दिखने लगती है। जनता को लुभाने के लिए फ्री बिजली, राशन, नकद सहायता और कर्जमाफी जैसी योजनाओं का ऐलान किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की है और कहा कि यह देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। सवाल यह है कि क्या मुफ्त की योजनाओं का कोई अंत होगा, या फिर यह राजनीति का स्थायी हिस्सा बन जाएंगी? आइए जानते हैं कि किस राज्य में कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं और इसका देश पर क्या असर पड़ रहा है।
मुफ्त योजनाओं की राजनीति और सुप्रीम कोर्ट की चिंता
भारत में चुनावों के दौरान मुफ्त योजनाओं का ऐलान अब एक परंपरा बन गया है। हर राज्य में सरकारें विभिन्न प्रकार की फ्री योजनाओं की घोषणा कर रही हैं, जिससे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपनी चिंता जताते हुए कहा है कि क्या हम मुफ्तखोरी को बढ़ावा देकर परजीवियों का एक वर्ग तैयार कर रहे हैं?
फ्रीबीज क्या है?
फ्रीबीज वे योजनाएं हैं, जिनके तहत सरकारें जनता को मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। यह एक प्रकार का लोकलुभावन प्रयास होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य चुनावों में वोट बैंक को मजबूत करना होता है। आमतौर पर इनमें मुफ्त बिजली, राशन, नकद सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और कर्जमाफी शामिल होती हैं।
कहां से हुई शुरुआत?
फ्रीबीज का चलन दक्षिण भारत के राज्यों से शुरू हुआ था, जहां सरकारें मिक्सर, टीवी और लैपटॉप जैसी वस्तुएं मुफ्त में बांटने लगी थीं। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति पूरे देश में फैल गई और हर राज्य की सरकारें अपने-अपने स्तर पर मुफ्त योजनाओं का ऐलान करने लगीं।
केंद्र सरकार की मुफ्त योजनाएं
1. आयुष्मान भारत योजना: हर गरीब परिवार को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज।
2. पीएम किसान सम्मान निधि: हर साल किसानों को 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता।
3. मुफ्त राशन योजना: 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध।
4. उज्ज्वला योजना: गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस सिलेंडर।
5. पीएम आवास योजना: गरीबों को मुफ्त आवास उपलब्ध।
राज्यों में चल रहीं मुफ्त की योजनाएं
मध्य प्रदेश
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- लाडली बहना योजना की पात्र महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये मिलते हैं।
- 12वीं पास करने वाली मेधावी लड़कियों को स्कूटी।
- 100 यूनिट तक बिजली 100 रुपये में।
- किसानों को सलाना 12 हजार रुपये देने का वादा।
- 21 साल की उम्र में पात्र लड़कियों को 1 लाख रुपये का प्रावधान।
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पंजाब
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- 300 यूनिट मुफ्त बिजली की सौगात।
- महिलाओं को 1000 महीना देने का वादा। अभी अमल नहीं हुआ।
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झारखंड
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- 200 यूनिट मुफ्त बिजली की सुविधा।
- मइया सम्मान योजना- महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये।
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हिमाचल
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- घरेलू कनेक्शन पर 125 यूनिट मुफ्त बिजली।
- इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान योजना: महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये।
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राजस्थान
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- लाडो प्रोत्साहन योजना: बच्ची के जन्म पर 2 लाख रुपये का सेविंग बॉन्ड का वादा।
- 12वीं पास होने पर मेधावी लड़कियों को स्कूटी।
- किसान सम्मान निधि को 6000 रुपये बढ़ाने का वादा।
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कर्नाटक
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- गृह लक्ष्मी योजना: महिलाओं को हर महीने 2000 रुपये देने का प्रावधान।
- शक्ति गारंटी योजना: बसों में महिलाओं को मुफ्त सफर की सुविधा।
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तमिलनाडु
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- परिवार के मुखिया को हर महीने एक हजार की सहायता।
- बसों में महिलाओं को मुफ्त सफर की व्यवस्था।
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छत्तीसगढ़
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- गरीब महिलाओं को 500 रुपये में गैस सिलिंडर।
- महतारी वंदन स्कीम: शादीशुदा महिलाओं को 12000 रुपये की सलाना मदद।
- दीनदयाल उपाध्याय कृषि मजदूर योजना: भूमिहीन किसानों और मजदूरों को सलाना 10000 रुपये की मदद।
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तेलंगाना
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- पात्र महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये।
- 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त।
- 500 रुपये में गैस सिलिंडर।
- बसों में महिलाओं को मुफ्त सफर की सुविधा।
- 18,000 करोड़ रुपये के लोन माफी की घोषणा।
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महाराष्ट्र
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- हर गरीब को भोजन और आश्रय की सुविधा।
- किसान सम्मान योजना के तहत 15000 रुपये।
- किसानों का कर्ज माफ का वादा।
- महिलाओं और वृद्धों को हर महीने 2100 का एलान।
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दिल्ली
आप की सरकार में
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- हर महीने 20 हजार लीटर मुफ्त पानी।
- हर महीने 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त।
- महिलाओं को मुफ्त बस में यात्रा।
- फ्री वाई-फाई की व्यवस्था।
- बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थयात्रा।
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भाजपा के वादे
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- आयुष्मान भारत के तहत 10 लाख तक मुफ्त इलाज का वादा।
- महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा।
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गुजरात
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- गुजरात सरकार गंगा स्वरूपा योजना के तहत विधवा महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये की आर्थिक सहायता देती है।
- इंदिरा गांधी वृद्धा पेंशन के तहत एक हजार रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाती है।
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हरियाणा
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- मातृभाषा सत्याग्रहियों की पेंशन को 15 हजार से 20 हजार करने का वादा।
- सफाई कर्मियों की सैलरी 27 हजार तक करने का वादा।
- स्ट्रीट वेंडर्स और फेरीवालों को 10 हजार रुपये सालाना मदद की बात।
- अंत्योदय और बीपीएल परिवार को 500 में गैस सिलिंडर।
- पांच लाख आवास देने का वादा।
- पांच लाख घरों में मुफ्त बिजली।
- धान की जगह दूसरी फसल पर प्रति एकड़ 10 हजार देने का वादा।
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उत्तर प्रदेश
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- छात्र छात्राओं को मुफ्त मोबाइल और टैबलट।
- किसानों को मुफ्त बिजली की घोषणा।
- राज्यों के माली हालत पर असर
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मुफ्त की रेवड़ियों ने कई राज्यों का बजट बिगाड़ रखा है। यह सभी राजनीतिक दल जानते हैं। बावजूद इसके फ्रीबीज का ऐलान करना इन राज्यों के सामने चुनावी मजबूरी है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों को राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है। मगर इन राज्यों में मुफ्त की रेवड़ी वाली योजनाएं धड़ल्ले से जारी हैं।
राज्यों पर आर्थिक संकट
राज्यों द्वारा मुफ्त योजनाओं के ऐलान से उनका वित्तीय संतुलन बिगड़ रहा है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों को राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है। एमके ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और आंध्र प्रदेश में वित्तीय घाटा लगातार बढ़ रहा है। तेलंगाना पर 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। क्रिसिल रेटिंग्स के मुताबिक, इस साल राज्यों का कुल राजकोषीय घाटा 1.1 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है।
कल्याणकारी योजनाओं और फ्रीबीज में अंतर
फ्रीबीज और कल्याणकारी योजनाओं में एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। कल्याणकारी योजनाएं दीर्घकालिक विकास को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, जबकि फ्रीबीज का मुख्य उद्देश्य तत्काल वोट हासिल करना होता है। उदाहरण के लिए, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं कल्याणकारी होती हैं, लेकिन मुफ्त बिजली और नकद सहायता फ्रीबीज की श्रेणी में आती हैं।
चुनावों से पहले मुफ्त योजनाओं का ऐलान
हर चुनाव में राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में मुफ्त योजनाओं की घोषणा करते हैं। मुफ्त बिजली, लैपटॉप, स्मार्टफोन, बेरोजगारी भत्ता और कर्जमाफी सबसे अधिक प्रचारित योजनाएं होती हैं।
मुफ्त की योजनाएं जनता को तात्कालिक राहत देती हैं, लेकिन राज्यों की अर्थव्यवस्था पर इसका भारी बोझ पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है कि यह प्रवृत्ति समाज में परजीविता को बढ़ावा दे सकती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे मुफ्त योजनाओं की जगह रोजगार और बुनियादी ढांचे में निवेश करें, ताकि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके।