‘ONE CHINA’ नीति से G7 देशों ने किया किनारा, इधर-ड्रैगन बोला-आंतरिक हस्तक्षेप स्वीकार नहीं

'ONE CHINA' नीति के संदर्भ को हटाकर जी-7 देशों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस कदम की चीन ने कड़ी निंदा की है और चेतावनी देते हुए इसे अपनी संप्रभुता के लिए खतरा करार दिया है।

‘ONE CHINA’: उज्जवल प्रदेश, ओटावा. जी-7 (G7) देशों (Countries) ने हाल ही में अपने बयान में ‘एक चीन’ (ONE CHINA) नीति (Policy) के संदर्भ को हटाकर (Distanced) एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस कदम की चीन (Dragon) ने कड़ी निंदा की है और चेतावनी (Warning) देते हुए इसे अपनी संप्रभुता के लिए खतरा करार दिया है। बीजिंग ने जी-7 के इस फैसले को “अहंकारी और दोहरे मापदंड” वाला कदम बताया, जिससे दोनों पक्षों के बीच तनाव और बढ़ गया है।

शनिवार को जारी रिपोर्ट्स के अनुसार, जी-7 ने अपने ताइवान से संबंधित बयान से ‘एक चीन’ नीति का उल्लेख हटा दिया, जो लंबे समय से इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने का आधार रही है। इस नीति के तहत अमेरिका समेत कई देश आधिकारिक तौर पर ताइवान को चीन का हिस्सा मानते हैं, हालांकि वे इसके साथ अनौपचारिक संबंध बनाए रखते हैं। जी-7 के इस बदलाव को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि यह पश्चिमी देशों की ओर से चीन के प्रति सख्त रुख को दर्शाता है। जी-7 के विदेश मंत्रियों के इस संयुक्त बयान में चीन द्वारा ताइवान पर की जा रही “जबरदस्ती” की निंदा की गई, जो फरवरी में जापान-अमेरिका के एक संयुक्त बयान के अनुरूप है। ताइवान खुद को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है लेकिन चीन उसे अपना हिस्सा बताता है।

चीन के परमाणु विस्तार पर जताई चिंता

इस बयान में जी7 सदस्यों ने चीन के परमाणु हथियारों के बढ़ते जखीरे को लेकर चिंता जताई। हालांकि पिछले नवंबर में जारी बयान की तुलना में इस बार शिनजियांग, तिब्बत और हांगकांग में मानवाधिकार हनन के मुद्दे को शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा, पिछले बयानों में शामिल वे पंक्तियां भी हटा दी गईं जिनमें चीन के साथ “रचनात्मक और स्थिर संबंधों” की इच्छा जताई गई थी। साथ ही, “सीधे और स्पष्ट संवाद के जरिए मतभेदों को हल करने” जैसी बातों का भी इस बार के बयान में उल्लेख नहीं किया गया।

वन चाइना नीति पर मौन

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि नवंबर में जारी बयान में जी7 देशों ने अपनी “वन चाइना नीति” पर स्थिर रुख को दोहराया था, लेकिन इस बार इसे हटा दिया गया। यह नीति बीजिंग को आधिकारिक सरकार के रूप में मान्यता देती है और ताइवान के साथ अनौपचारिक संबंध बनाए रखने की बात कहती है। इस बदलाव से निश्चित रूप से चीन की चिंताएं बढ़ेंगी। बयान में ताइवान को लेकर कहा गया कि जी7 देश “ताइवान जलडमरूमध्य में शांति पूर्ण समाधान का समर्थन करते हैं और यथास्थिति को बलपूर्वक या जबरदस्ती बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास का विरोध करते हैं।”

चीन की कड़ी प्रतिक्रिया

जी7 के इस बयान पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कनाडा स्थित चीनी दूतावास ने इसे “तथ्यों की अनदेखी करने और चीन की संप्रभुता को ठेस पहुंचाने” वाला बयान बताया। चीनी दूतावास ने कहा, “जी7 देशों की यह हरकत चीन के आंतरिक मामलों (Internal Interference) में गंभीर हस्तक्षेप है और इसे स्वीकार नहीं (Not Accepted) किया जा सकता।” चीन ने जोर देकर कहा कि ताइवान मसले पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए “वन चाइना सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए।”

दक्षिण चीन सागर को लेकर भी चिंता

जी7 देशों के विदेश मंत्रियों ने पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में हालात को लेकर भी चिंता जाहिर की। विशेष रूप से, उन्होंने चीन द्वारा फिलीपींस और वियतनाम के खिलाफ “खतरनाक सैन्य कार्रवाइयों” और “जल तोपों के इस्तेमाल” पर गंभीर चिंता जताई। बयान में कहा गया कि चीन की “गैर-बाजार नीतियां” वैश्विक व्यापार को बाधित कर रही हैं और उद्योगों में असंतुलन पैदा कर रही हैं। जी7 देशों ने चीन से निर्यात नियंत्रण उपायों से बचने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान न पैदा करने की अपील की। इसके जवाब में, कनाडा स्थित चीनी दूतावास ने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र “भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का अखाड़ा नहीं है” और जी7 देशों को “शीत युद्ध की मानसिकता छोड़नी चाहिए।”

कौन हैं जी-7 देश?

जी-7 (ग्रुप ऑफ सेवन) सात प्रमुख विकसित देशों का एक समूह है, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए नियमित रूप से मिलते हैं। ये देश अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। इनमें अमेरिका, जापान, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली और कनाडा शामिल हैं। इस समूह की शुरुआत 1975 में हुई थी और तब से यह वैश्विक नीतियों, व्यापार, सुरक्षा और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। यूरोपीय संघ भी जी-7 बैठकों में हिस्सा लेता है, लेकिन उसे औपचारिक सदस्य नहीं माना जाता। जी-7 देश मिलकर दुनिया की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने सामूहिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं।

अमेरिका और जापान का बढ़ता प्रभाव

इस बार के जी7 बयान में ताइवान को लेकर “जबरदस्ती” शब्द के इस्तेमाल को अमेरिका और जापान के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। पिछले महीने जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक शिखर सम्मेलन में इस शब्द का उपयोग किया था। हालांकि ट्रंप प्रशासन की चीन नीति को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है, लेकिन उनकी टीम में कई चीन विरोधी रणनीतिकारों की नियुक्ति की गई है। इसके अलावा, शी जिनपिंग और ट्रंप के बीच जल्द ही एक संभावित बैठक की चर्चा भी हो रही है। इस बीच, जी7 के विदेश मंत्री कनाडा के ला माल्बे नामक पर्यटन स्थल पर बैठक कर रहे हैं, जहां वे चीन से संबंधित वैश्विक मामलों पर विस्तृत चर्चा कर रहे हैं।

Ramesh Kumar Shaky

रमेश कुमार शाक्य एक अनुभवी पत्रकार हैं, जिनके पास 22 वर्षों से अधिक का अनुभव है। अपने करियर के दौरान, उन्होंने कई प्रतिष्ठित समाचार संगठनों के साथ काम किया और… More »
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