Khutba Nikah के नाम पर धोखा! कैसे मुस्लिम महिलाएं हो रही हैं कानून से वंचित, बन रही शिकार?
Khutba Nikah: हैदराबाद में गरीब मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामा के बिना शादी करने के लिए "खुतबा की शादी" कहते हैं। ये अवैध विवाह न तो कानून में मान्य हैं, न महिलाएं कोई कानूनी सहायता पा सकती हैं।

Khutba Nikah: उज्जवल प्रदेश डेस्क. हैदराबाद। एक ओर जहां निकाह एक पवित्र और कानूनी इस्लामिक प्रक्रिया मानी जाती है, वहीं हैदराबाद के कुछ इलाकों में इसे धोखाधड़ी का जरिया बना लिया गया है। ‘खुतबा निकाह’, जो केवल एक धार्मिक औपचारिकता है, को अब क़ानूनी शादी के रूप में पेश किया जा रहा है — बिना काज़ी, बिना निकाहनामा और बिना किसी सरकारी दस्तावेज के।
कैसे होती है ये खुतबा (फर्जी) शादी?
इस प्रक्रिया में लड़का और लड़की के परिवार वाले केवल दो गवाहों की मौजूदगी में एक छोटा सा मजहबी उपदेश (खुतबा) पढ़ते हैं और इसे शादी का रूप दे देते हैं। न कोई रजिस्ट्रेशन होता है, न कोई निकाहनामा। नतीजा यह होता है कि इस तरह की शादी न तो कानूनन मान्य होती है और न ही इसका कोई रिकॉर्ड होता है।
Khutba Nikah: राबिया की दर्दनाक कहानी- तीन महीने में टूटी शादी
राबिया, जो कि 28 साल की थी, उसे इमरान नाम के युवक ने बिना कागजी प्रक्रिया के शादी (Khutba Nikah) का प्रस्ताव दिया। गरीब माता-पिता ने उम्र और हालात के चलते हाँ कर दी। इमरान ने 50,000 रुपये मेहर का वादा किया, दो गवाह लाए और ‘खुतबा’ पढ़वा दिया।
शादी के केवल तीन महीने बाद, राबिया को बिना कारण घर से निकाल दिया गया। अब राबिया न तो कोर्ट जा सकती है, न पुलिस के पास, क्योंकि उसके पास कोई सबूत नहीं है कि उसकी शादी कभी हुई थी। वह अब अपने माता-पिता के घर पर है — टूटी हुई, डरी हुई और न्याय से वंचित।
कानूनी मदद क्यों नहीं मिलती?
ऐसी ‘खुतबा शादियों’ (Khutba Nikah) में कोई कानूनी दस्तावेज नहीं होता, न निकाहनामा, न कोर्ट मैरिज। यही वजह है कि न तो महिला तलाक ले सकती है और न ही भरण-पोषण की मांग कर सकती है। पुलिस और अदालत के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं होता, जिससे न्याय मिल सके।
Khutba Nikah: 2017 के बाद यह चलन क्यों बढ़ा?
2017 में तीन तलाक़ पर बैन और 2018 में व्यभिचार (Adultery) को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने के बाद कई पुरुषों ने कानूनी शादी से बचने का रास्ता खोज निकाला। उन्हें अब न तलाक देना पड़ता है, न कोई जिम्मेदारी उठानी होती है। बस एक ‘खुतबा’ और सब खत्म।
शादी का काला बाज़ार: पैसे में बिकती ज़िंदगी
कुछ मैरिज ब्यूरो ने तो इसे एक धंधा बना लिया है। मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये लोग फोन पर तीन महीने की शादी (Khutba Nikah) ऑफर करते हैं, जिसमें न काज़ी होता है, न निकाहनामा। एक महिला एजेंट ने साफ कहा, “कोई पुलिस का डर नहीं, सिर्फ तीन महीने के लिए शादी।” यानी अब शादी भी किराए की चीज़ बन गई है — लेकिन यहां नुकसान किसी की ज़िंदगी और आत्म-सम्मान का होता है।
इन महिलाओं के लिए क्या है रास्ता?
अभी तक सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। हालांकि कुछ सामाजिक संगठनों ने आवाज उठाई है कि सरकार को इस पर कानून बनाना चाहिए और महिलाओं को कानूनी सुरक्षा देनी चाहिए। जब तक ऐसी फर्जी शादियों (Khutba Nikah) पर रोक नहीं लगाई जाती, तब तक गरीब और असहाय महिलाएं इसी तरह धोखे का शिकार बनती रहेंगी।