Kumbh Mela : इन 5 पवित्र नदियों के घाट पर होता है आयोजन, जानें इनका पौराणिक महत्व
Kumbh Mela : कुंभ मेला भारत की 5 पवित्र नदियों- गंगा, यमुना, सरस्वती, क्षिप्रा, और गोदावरी के घाटों पर आयोजित होता है। गंगा को राजा भगीरथ की तपस्या का फल, यमुना को यमराज की बहन, सरस्वती को अदृश्य ज्ञान की नदी, क्षिप्रा को भगवान विष्णु के रक्त से उत्पन्न और गोदावरी को भगवान ब्रह्मा की बेटी माना जाता है। इन नदियों की पौराणिक कथाएं और धार्मिक महत्व श्रद्धालुओं को आस्था और संस्कृति से जोड़ते हैं।

Kumbh Mela : कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह आस्था और परंपरा का प्रतीक है। यह मेले भारत की 5 पवित्र नदियों के घाटों पर आयोजित होता है, जिनका हिंदू धर्म में विशेष पौराणिक महत्व है। संगम, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे तीर्थ स्थलों पर लगने वाले इस मेले का जुड़ाव गंगा, यमुना, सरस्वती, क्षिप्रा और गोदावरी नदियों से है। आइए जानते हैं इन नदियों का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व।
गंगा नदी का पौराणिक महत्व
गंगा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कपिल मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों का उद्धार गंगाजल से ही संभव हुआ। भगीरथ की कठोर तपस्या से गंगा धरती पर अवतरित हुईं और मानवता को शुद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रदान किया।
यमुना नदी का पौराणिक महत्व
यमराज की बहन मानी जाने वाली यमुना, यमुनोत्री से उद्गमित होती हैं। उनकी कथा सूर्य और छाया देवी से जुड़ी है। कृष्ण अवतार में यमुना की भूमिका भी उल्लेखनीय है। यमुनोत्री की तीर्थ यात्रा का समापन यमुना दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है।
सरस्वती नदी का पौराणिक महत्व
सरस्वती को अदृश्य नदी कहा जाता है। ऋषि-मुनियों ने इसके किनारे ग्रंथ और पुराणों की रचना की। महाभारत की रचना के दौरान गणेश जी द्वारा सरस्वती को धीमी गति से बहने का अनुरोध अनसुना करने के कारण उन्हें विलुप्ति का श्राप मिला।
क्षिप्रा नदी का पौराणिक महत्व
भगवान विष्णु के रक्त से उत्पन्न क्षिप्रा नदी का उज्जैन से गहरा संबंध है। यह ऋषि संदीपनी के आश्रम और भगवान कृष्ण की शिक्षा का गवाह रही है। त्रेतायुग में राजा दशरथ के श्राद्धकर्म से लेकर राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ की तपस्या तक, क्षिप्रा घाट का पौराणिक महत्व अमिट है।
गोदावरी नदी का पौराणिक महत्व
गोदावरी का उद्गम त्र्यंबकेश्वर से हुआ है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे दक्षिण गंगा के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, गौतम ऋषि इसे भगवान शिव की जटा से लेकर आए थे। गोदावरी की सहायक नदियां 7 महान ऋषियों द्वारा निर्मित मानी जाती हैं।
कुंभ मेले का आयोजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पवित्र नदियों की महिमा का उत्सव भी है। इन नदियों की पौराणिक कथाएं और उनके घाटों पर आयोजित अनुष्ठान हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखते हैं।