Mayawati News: मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को ही पार्टी से बाहर कर दिया, लीडरशिप में भ्रम और काडर में निराशा
Mayawati News: मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को ही पार्टी से बाहर कर दिया है। पहले उन्हें राष्ट्रीय संयोजक की जिम्मेदारी से हटाया गया और फिर वह पार्टी से ही बेदखल हो गए।

Mayawati News: उज्जवल प्रदेश,नई दिल्ली. मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को ही पार्टी से बाहर कर दिया है। पहले उन्हें राष्ट्रीय संयोजक की जिम्मेदारी से हटाया गया और फिर वह पार्टी से ही बेदखल हो गए। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आकाश आनंद एक खेमे को ही आगे बढ़ा रहे थे और इसके चलते गुटबाजी बढ़ रही थी।
ऐसी स्थिति में हाईकमान मायावती ने उन्हें बाहर करने का फैसला कर लिया। लेकिन पार्टी की चिंता यहां खत्म नहीं होती बल्कि शुरू होती है। दरअसल जिस तरह से आकाश आनंद को बसपा से बाहर किया गया है, उससे काडर में निराशा है। मायावती ने 2012 में सत्ता से विदाई के बाद से अब तक नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके सिंह समेत तमाम ऐसे नेताओं को भी बाहर का रास्ता दिखाया है, जो कभी बसपा के मिशन का हिस्सा थे।
इससे लीडरशिप में भ्रम की स्थिति भी समझ में आती है। कभी मायावती सतीश चंद्र मिश्रा को प्रमोट करती हैं तो कभी उन्हें बैकबेंचर बनाकर आकाश आनंद को प्रमोट किया जाता है। आकाश आनंद लोकसभा चुनाव में आक्रामक होते हैं तो उन्हें हटा लिया जाता है। फिर उनकी वापसी होती है और सक्रिय होने के बाद एक बार फिर से उन पर ऐक्शन होता है और वे पार्टी से बाहर हो जाते हैं।
हाईकमान के ऐसे औचक फैसलों से कार्यकर्ता चौंकते हैं तो वहीं उनमें निराशा का भाव भी है। पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि यदि नेतृत्व के स्तर पर ही चीजें तय नहीं हैं तो फिर कार्यकर्ता किसके आदेशों पर काम करें। यह स्थिति मायावती की स्थिति कमजोर कर रही है और बसपा भी संगठन के तौर पर बिखराव की स्थिति में है।
अब सवाल यह है कि मायावती की ऐसी स्थिति से फायदा किसे है। बसपा को 2022 के चुनाव में एक ही सीट पर जीत मिली थी। इसके अलावा 2024 के आम चुनाव में वह जीरो पर ही रह गई। बसपा के तमाम नेता और कार्यकर्ता सपा के पाले में चले गए हैं। इससे सपा मजबूत हुई है और उसे भाजपा के भी कई इलाकों में जीत हासिल हुई है।
यह स्थिति बसपा की हालत बताती है कि अब नेतृत्व पर यकीन घट रहा है और उसका ठोस जनाधार माने जाने वाले दलित समुदाय के लोग भी छिटक रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करके बसपा ने 10 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी। लेकिन फिर सपा का साथ छूटा तो आधे समर्थक साइकिल पर ही सवार हो गए और आधे ही बसपा के साथ वापस लौटे। कुछ ऐसे इलाके भी हैं, जहां बसपा समर्थकों की बड़ी संख्या भाजपा के साथ हो गई।
भाजपा को 2014 के आम चुनाव, 2017 के विधानसभा इलेक्शन और फिर 2019 के आम चुनाव में बसपा के वोटर कहे जाने वाले समाज का समर्थन मिला। फिर 2022 में सपा को भी कुछ वोट मिले और 2024 के आम चुनाव में बसपा समर्थकों का बड़ा हिस्सा सपा के साथ ही रहा।
इस तरह इन दो दलों के बीच बसपा के जनाधार को हथियाने के लिए टाइट फाइट है। लेकिन तीसरा और सबसे अहम प्लेयर चंद्रशेखर हैं। उनकी भीम आर्मी बसपा के क्षरण के दौर पर अपने चरण मजबूती से जमाने की कोशिश में है। नगीना से सांसद बने चंद्रशेखर पश्चिम यूपी के अलावा सूबे के अन्य हिस्सों में भी खूब घूम रहे हैं।