राधाष्टमी आज मनाई जा रही , शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

नई दिल्ली
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, तो वहीं शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधाष्टमी। इस बार अष्टमी 4 सितंबर 2022, रविवार को यानी आज मनाई जा रही है। आज के दिन राधा रानी के साथ भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने का विधान है। जानिए राधाष्टमी का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
राधा अष्टमी के अवसर पर, विशेष रूप से उत्तर भारत में भगवान कृष्ण के मंदिरों में विशेष पूजा और प्रार्थना की जाती है। खासकर के मथुरा, वृंदावन, बरसाना आदि में।

उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी का पर्व 04 सितंबर को मनाया जाएगा।
 

राधाष्टमी 2022 की पूजा विधि
–    राधाष्टमी के दिन भगवान कृष्ण और राधा की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है।
–    इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
 –   पूजा घर में या फिर एक चौकी में राधा-कृष्ण के संयुक्त चित्र या मूर्ति को को स्थापित करें।
  –  सबसे पहले राधा-कृष्ण की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं।
 – भगवान को फूल, माला, रोली, चंदन, अक्षत , नैवेद्य आदि अर्पित करें। इसके बाद भोग लगाएं
–    भोग के बाद घी का दीपक और धूपक जलाकर मनन करें।
 –   राधा-कृष्ण की स्तुति मंत्रो और भजनों के द्नारा करें।
  –  श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का पाठ करें
   – अंत में आरती करके भूलचूक के लिए माफी मांग लें।
    – व्रत का पारण अगले दिन सुहागिन महिला या ब्राह्मणों को भोजन और दान दे कर करना चाहिए।

                       श्री राधा चालीसा ————–

॥ दोहा ॥
श्री राधे वुषभानुजा,
भक्तनि प्राणाधार ।
वृन्दाविपिन विहारिणी,
प्रानावौ बारम्बार ॥
जैसो तैसो रावरौ,
कृष्ण प्रिय सुखधाम ।
चरण शरण निज दीजिये,
सुन्दर सुखद ललाम ॥

 

॥ चौपाई ॥
जय वृषभान कुंवारी श्री श्यामा ।
कीरति नंदिनी शोभा धामा ॥
नित्य विहारिणी श्याम अधर ।
अमित बोध मंगल दातार ॥
रास विहारिणी रस विस्तारिन ।
सहचरी सुभाग यूथ मन भावनी ॥
नित्य किशोरी राधा गोरी ।
श्याम प्रन्नाधन अति जिया भोरी ॥
करुना सागरी हिय उमंगिनी ।
ललितादिक सखियाँ की संगनी ॥
दिनकर कन्या कूल विहारिणी ।
कृष्ण प्रण प्रिय हिय हुल्सवानी ॥
नित्य श्याम तुम्हारो गुण गावें ।
श्री राधा राधा कही हर्शवाहीं ॥
मुरली में नित नाम उचारें ।
तुम कारण लीला वपु धरें ॥
प्रेमा स्वरूपिणी अति सुकुमारी ।
श्याम प्रिय वृषभानु दुलारी ॥
नावाला किशोरी अति चाबी धामा ।
द्युति लघु लाग कोटि रति कामा ॥10
गौरांगी शशि निंदक वदना ।
सुभाग चपल अनियारे नैना ॥
जावक यूथ पद पंकज चरण ।
नूपुर ध्वनी प्रीतम मन हारना ॥
सन्तता सहचरी सेवा करहीं ।
महा मोड़ मंगल मन भरहीं ॥
रसिकन जीवन प्रण अधर ।
राधा नाम सकल सुख सारा ॥
अगम अगोचर नित्य स्वरूप ।
ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ॥
उप्जेऊ जासु अंश गुण खानी ।
कोटिन उमा राम ब्रह्मणि ॥
नित्य धाम गोलोक बिहारिनी ।
जन रक्षक दुःख दोष नासवानी ॥
शिव अज मुनि सनकादिक नारद ।
पार न पायं सेष अरु शरद ॥
राधा शुभ गुण रूपा उजारी ।
निरखि प्रसन्ना हॉट बनवारी ॥
ब्रज जीवन धन राधा रानी ।
महिमा अमित न जय बखानी ॥ 20
प्रीतम संग दिए गल बाहीं ।
बिहारता नित वृन्दावन माहीं ॥
राधा कृष्ण कृष्ण है राधा ।
एक रूप दौऊ -प्रीती अगाधा ॥
श्री राधा मोहन मन हरनी ।
जन सुख प्रदा प्रफुल्लित बदानी ॥
कोटिक रूप धरे नन्द नंदा ।
दरश कारन हित गोकुल चंदा ॥
रास केलि कर तुम्हें रिझावें ।
मान करो जब अति दुःख पावें ॥
प्रफ्फुल्लित होठ दरश जब पावें ।
विविध भांति नित विनय सुनावें ॥
वृन्दरंन्य विहारिन्नी श्याम ।
नाम लेथ पूरण सब कम ॥
कोटिन यज्ञ तपस्या करुहू ।
विविध नेम व्रत हिय में धरहु ॥
तू न श्याम भक्ताही अपनावें ।
जब लगी नाम न राधा गावें ॥
वृंदा विपिन स्वामिनी राधा ।
लीला वपु तुवा अमित अगाध ॥ 30
स्वयं कृष्ण नहीं पावहीं पारा ।
और तुम्हें को जननी हारा ॥
श्रीराधा रस प्रीती अभेद ।
सादर गान करत नित वेदा ॥
राधा त्यागी कृष्ण को भाजिहैं ।
ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं ॥
कीरति कुमारी लाडली राधा ।
सुमिरत सकल मिटहिं भाव बड़ा ॥
नाम अमंगल मूल नासवानी ।
विविध ताप हर हरी मन भवानी ॥
राधा नाम ले जो कोई ।
सहजही दामोदर वश होई ॥
राधा नाम परम सुखदायी ।
सहजहिं कृपा करें यदुराई ॥
यदुपति नंदन पीछे फिरिहैन ।
जो कौउ राधा नाम सुमिरिहैन ॥
रास विहारिणी श्यामा प्यारी ।
करुहू कृपा बरसाने वारि ॥
वृन्दावन है शरण तुम्हारी ।
जय जय जय व्र्शभाणु दुलारी ॥ 40

 

॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरी,
रसिकेश्वर धनश्याम ।
करहूँ निरंतर बास मै,
श्री वृन्दावन धाम ॥
॥ इति श्री राधा चालीसा ॥

 

राधाजी की महिमा और जन्म कथा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद राधाअष्टमी के रूप में श्रीराधाजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाजी का जन्म हुआ था। पंचांग के अनुसार इस बार अष्टमी तिथि 3 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर आरंभ हुई। वहीं इस तिथि का समापन 4 सितंबर,रविवार को सुबह 10 बजकर 40 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी का पर्व 4 सितंबर को मनाया जाएगा।

 

ऐसे हुआ राधाजी का जन्म  
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी भी श्रीकृष्ण की तरह ही अनादि और अजन्मी हैं। वे बृज में वृषभानु वैश्य की कन्या हुईं।श्री राधा का जन्म गोकुल के पास स्थित रावल नामक गाँव में हुआ था। उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ बल्कि माता कीर्ति ने अपने गर्भ में 'वायु'को धारण कर रखा था और योगमाया की प्रेरणा से कीर्ति ने वायु को जन्म दिया। लेकिन वायु के जन्म के साथ ही वहां राधा,कन्या के रूप में प्रकट हो गईं इसलिए श्रीराधा रानी को देवी अयोनिजा कहा जाता है।बाद में वह अपने पिता बृषभानु और माता कीर्ति के साथ बरसाने में जाकर रहने लगीं। यह भी कहा गया है कि ब्रह्म ने जब श्री कृष्ण का रूप धारण किया तो भगवान् के श्री अंग से उनकी महाशक्ति स्वरूपा श्री राधा का आविर्भाव हुआ  बारह वर्ष बीतने पर उनके माता-पिता ने 'रायाण' वैश्य के साथ उनका सम्बन्ध निश्चित कर दिया। उस समय श्री राधा घर में अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अंतर्धयान हो गईं।पदम् पुराण में श्री राधा को आद्यप्रकृति का कृष्णप्रिया रूप कहा गया है।

 

राधाजी की महिमा
स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं राधा नाम लेने वाले के पीछे चल देता हूँ ।अतः परमेश्वर श्री कृष्ण इनके अधीन रहते हैं। शास्त्रों ने राधाजी के दिव्य और आलौकिक स्वरुप का वर्णन करते हुए कहा है कि जैसे श्री कृष्ण त्रिगुण माया और विकास रुपी प्रकृति से परे ब्रह्मरूप हैं,वैसे ही श्री राधा प्रकृति से दूर ब्रह्मस्वरूपा हैं।श्री कृष्ण के आनंद कंद रूप का कारण श्री राधा हैं।कार्तिक की पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने राधाजी का पूजन किया। उत्तम रत्नों की गुटिका में  राधा-कवच रखकर गोपों सहित श्री कृष्ण ने उसे अपने कंठ और दाहिनी बांह में धारण किया। भक्तिभाव से उनका ध्यान और स्तवन कर राधा के चबाए ताम्बूल को लेकर स्वयं ने खाया।

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