सुविवि वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह सहित कमेटी के पांच सदस्यों के खिलाफ केस दर्ज, निलंबन की कार्रवाई शुरू

उदयपुर
राजस्थान के सीकर स्थित गुरुकुल विश्वविद्यालय के फर्जी तरीके से कागजों में ही सही बताने के मामले में वेरिफिकेशन कमेटी के मुखिया सुविवि उदयपुर के वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उच्च शिक्षा विभाग ने जयपुर के आदर्श नगर थाने में वाइस चांसलर समेत पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया है। राज्य सरकार ने अब प्रो. अमेरिका सिंह को कुलपति पद से निलंबित किए जाने की कार्रवाई शुरू कर दी है। अगर कुलपति निलंबित होते हैं तो ऐसा उदयपुर के इतिहास में पहली बार होगा।

उच्च शिक्षा विभाग जयपुर मुख्यालय ने गुरुकुल विश्वविद्यालय के फाउंडर ट्रस्टी रणजीत सिंह, सुविवि के वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह, कमेटी के सदस्य उदयपुर साइंस कॉलेज के डीन प्रो. जीएस राठौड़, राजकीय विधि महाविद्यालय अलवर के डॉ. विजय बेनीवाल, आरयू जयपुर के सह आचार्य डॉ. जयंत सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी, अपराध में सामूहिक भागीदारी, फर्जी दस्तावेज तैयार करने जैसी धाराओं में मामला दर्ज करवाया गया है। इस कार्रवाई के बाद अब प्रो. अमेरिका सिंह का निलंबन लगभग तय माना जा रहा है।

उच्च शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि राज्य सरकार के वाइस चांसलर की निलंबन की फाइल तैयार कर ली है। इसको बुधवार को राजभवन भेजा जाएगा। राज्यपाल चाहें तो कुलपति को सीधे ही निलंबित कर सकते हैं। अगर चाहें तो कुलपति को अपना पक्ष रखने का मौका दे सकते हैं। इस मामले में गुरुकुल विश्वविद्यालय के ट्रस्टी रणजीत सिंह की गिरफ्तारी भी होने की संभावना है।

क्या कर सकते हैं वाइस चांसलर
वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह इस मामले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जा सकते हैं। अगर उन्हें स्टे मिलता है तो वे कुलपति पद पर मामले के विचाराधीन रहने तक कायम रह सकते हैं। हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।

क्या है मामला
सीकर में गुरुकुल यूनिवर्सिटी की स्थापना वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी को गुरुकुल यूनिवर्सिटी में तय मापदंड की जांच कर रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी। कमेटी ने तय मापदंडों को नजरंदाज किया और ऐसे तथ्य पेश किए जो मौके पर मौजूद ही नहीं थे। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने विधानसभा में विधेयक पेश कर दिया। प्रतिपक्ष उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने इस पूरे मामले का खुलासा किया तो सरकार को विधेयक वापस लेना पड़ा। इसके बाद कमेटी मंशा समझ में आने पर सरकार ने कार्रवाई शुरू की।

 

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