Supreme Court ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा व‍िधेयकों को लंब‍ित रखने का फैसला अवैध बताया

Supreme Court: तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 2023 में 10 विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रखने के कदम को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध और गलत करार दिया। और कहा कि विधानसभा द्वारा दोबारा पारित क‍िसी व‍िधेयक को आरक्षित रखने का अध‍िकार राज्यपाल के पास नहीं है।

Supreme Court: उज्जवल प्रदेश, नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 2023 में 10 विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रखने के कदम को अवैध और गलत करार दिया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने फैसला सुनाया कि विधानसभा द्वारा दोबारा पारित क‍िसी व‍िधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखने का अध‍िकार राज्यपाल के पास नहीं है।

फैसले में कहा गया क‍ि राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखना अवैध है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल ने सद्भावनापूर्वक कार्य नहीं किया। विधेयकों को उसी दिन राज्यपाल द्वारा स्वीकृत मान लिया गया था, जिस दिन उन्हें पुनः उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल के पास विधेयक को रोकने की कोई गुंजाइश नहीं है, साथ ही कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है। उन्हें अनिवार्य रूप से मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करना होता है।

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राज्यपाल ने खुद को “राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी” के रूप में पेश किया..

इस वर्ष फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के शीर्ष विधि अधिकारी अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी और तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी की दलीलें सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि राज्यपाल ने खुद को वैध रूप से निर्वाचित राज्य सरकार के “राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी” के रूप में पेश किया है। तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद राज्यपाल ने अपने पास लंबित 12 में से 10 विधेयकों को उनकी सहमति के लिए वापस कर दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, “यदि राज्यपाल को प्रथम दृष्टया लगता है कि विधेयक में कुछ खामियां हैं, तो क्या उन्हें इसे राज्य सरकार के संज्ञान में नहीं लाना चाहिए? सरकार से यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह राज्यपाल के मन में क्या है, यह जान सके? यदि राज्यपाल को व‍िधेयक में कुछ खामियां परेशान कर रही थीं, तो राज्यपाल को इसे तुरंत सरकार के संज्ञान में लाना चाहिए था और विधानसभा को विधेयक पर पुनर्विचार करना चाहिए था।” पिछले साल नवंबर में, शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर सवाल उठाए थे।

Abhay Tripathi

उज्जवल प्रदेश डॉट कॉम में बतौर सब एडिटर कार्यरत अभय त्रिपाठी को डिजिटल मीडिया में 2 साल से अधिक का अनुभव है। हिंदी टाइम्स, प्रदेश टूडे जैसे कई प्रतिष्ठित संस्था… More »

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