CBI Chief Appointment: उपराष्ट्रपति धनखड़ ने CJI को घेरा, CBI निदेशक की नियुक्ति पर उठाए सवाल
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने CBI Chief Appointment में CJI की भूमिका पर आपत्ति जाहिर की है। वहीं इसके अलावा उन्होंने जज के घर से नकदी मिलने पर भी खुलकर बात की।

CBI Chief Appointment: उज्जवल प्रदेश, नई दिल्ली. भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने CBI निदेशक की नियुक्ति में CJI की भूमिका पर आपत्ति जाहिर की है। उन्होंने सवाल उठाए हैं कि क्या ऐसा दुनिया में कहीं और हो रहा है? इसके अलावा उन्होंने जज के घर से नकदी मिलने पर भी खुलकर बात की। उपराष्ट्रपति ने कहा है कि हर अपराध की जांच होनी चाहिए। साथ ही कहा कि अगर पैसा मिला है, तो उसके स्त्रोत का भी पता लगाया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘मैं इस बात से पूरी तरह हैरान हूं कि CBI निदेशक जैसे कार्यपालिका के पदाधिकारी की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की भी भागीदारी होती है। कार्यपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका के अलावा किसी और की तरफ से क्यों होनी चाहिए? क्या ऐसा संविधान के तहत होता है? क्या ऐसा दुनिया में कहीं और हो रहा है?’ दरअसल, DSPE एक्ट के तहत सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक हाई पावर कमेटी करती है, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनकी तरफ से नॉमिनेट किया हुआ कोई जज शामिल होते हैं। कोच्चि में कानूनी की पढ़ाई कर रहे छात्रों से बातचीत में उन्होंने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अलग करने वाली सीमा कमजोर होने पर चिंता जाहिर की।
नकदी मिलने पर क्या बोले
धनखड़ ने सोमवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले की आपराधिक जांच शुरू की जाएगी। धनखड़ ने इस घटना की तुलना शेक्सपीयर के नाटक जूलियस सीजर के एक संदर्भ ‘इडस ऑफ मार्च’ से की, जिसे आने वाले संकट का प्रतीक माना जाता है। रोमन कलैंडर में इडस का अर्थ होता है, किसी महीने की बीच की तारीख। मार्च, मई, जुलाई और अक्टूबर में इडस 15 तारीख को पड़ता है। उपराष्ट्रपति ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि अब मुद्दा यह है कि यदि नकदी बरामद हुई थी तो शासन व्यवस्था को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी और पहली प्रक्रिया यह होनी चाहिए थी कि इससे आपराधिक कृत्य के रूप में निपटा जाता, दोषी लोगों का पता लगाया जाता और उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाता।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 14-15 मार्च की रात को न्यायपालिका को अपने खुदे के ‘इडस ऑफ मार्च’ का सामना करना पड़ा, जब बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की गई थी, लेकिन अब तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। धनखड़ ने कहा कि इस मामले से शुरुआत से ही एक आपराधिक मामले के तौर पर निपटा जाना चाहिए था, लेकिन उच्चतम न्यायालय के 90 के दशक के एक फैसले के कारण केंद्र सरकार के हाथ बंधे हुए हैं।
उन्होंने कहा, ‘अगर इतना अधिक मात्रा में पैसा है, तो हमें पता लगाना होगा: क्या यह दागी पैसा है? इस पैसे का स्रोत क्या है? यह एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में यह कैसे पहुंचा? यह किसका था? इस प्रक्रिया में कई दंड प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है। मुझे उम्मीद है कि प्राथमिकी दर्ज की जाएगी।’