Holika Dahan 2022: जाने रात में ही क्यों जलाई जाती है होलिका, दहन का शुभ मुहूर्त

होली के एक दिन पूर्व होली दहन त्यौहार होता है जिसको कई जगह छोटी होली, कामदु पियरे या जलाने वाली होली के नाम से भी जाना जाता है।

होलिका दहन होलिका नामक राक्षसी के जलने का प्रतीक है, होली का उत्सव मार्च के महीने में आता है और दो दिनों तक चलता है। यह त्योहार भगवान विष्णु द्वारा अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए शैतान होलिका के वध का प्रतीक है।

होलिका दहन 2022 : होली के एक दिन पूर्व सन्ध्या को  होलिका दहन (छोटी होली) किया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। लोग अग्नि की परिक्रमा भी करते हैं।  होलिका दहन (छोटी होली) की तैयारी त्योहार से कुछ दिन पहले शुरू हो जाती हैं। जिसमें लोग सूखी टहनियाँ, सूखे पत्ते इकट्ठा करते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और रक्षोगण के मंत्रो का उच्चारण किया जाता है।

यह त्योहार भगवान विष्णु द्वारा अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए शैतान होलिका के वध का प्रतीक है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। कहा जाता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। इसी लिए आज भी होली के त्यौहार पर होलिका दहन एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है।

होलिका दहन 2022 का मुहूर्त (Holika Dahan 2022 Muhurta) (छोटी होली) | कब है होलिका दहन 2022

इस दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त 2021, हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन मनाया जाएगा। (holika dahan 2022 mein kab hai)

  • अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 56 मिनट तक।
  • अमृत काल – सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक।
  • ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 50 मिनट से सुबह 05 बजकर 38 मिनट तक।
  • सर्वार्थसिद्धि योग – सुबह 06 बजकर 26 मिनट से शाम 05 बजकर 36 मिनट तक। इसके बाद शाम 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक।
  • अमृतसिद्धि योग – सुबह 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक।

होलिका दहन कौन सी दिशा में मनाये ?

  • होलिका दहन की चिता हमेशा प्रदोष काल के दौरान प्रज्ज्वलित करनी चाहिए,जब पूर्णिमा तिथि प्रचलित हो।
  • प्रदोष काल आमतौर पर सूर्यास्त के बाद प्रबल होता है।
  • भद्र पूर्णिमा की पहली छमाही के दौरान आती है और यही वह समय है जब सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए।
  • होलिका दहन शुभ मुहूर्त का निर्णय भद्र तीर्थ की व्यापकता के आधार पर किया जाता है।

होलिका दहन भद्र समाप्त होने के बाद ही किया जाना चाहिए और यदि भद्र आधी रात से पहले आती है तो केवल भद्र समय पर विचार किया जाना चाहिए और वह भी भद्र पूंछा| किसी भी परिस्थिति में, भद्र मुख के समय को नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह कुछ बुरी किस्मत और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों को जन्म दे सकता है।

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होलिका दहन किवदंती और महत्व (Holika Dahan 2022 )

होलिका दहन एक त्यौहार है जो बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, उस किवदंती के कारण जो इसके साथ जुडी हुई है। होलिका दहन की कहानी शैतान के मजबूत होने के बावजूद ईमानदार और अच्छे की जीत के बारे में है। होलिका दहन कहानी मूल रूप से हिरण्यकश्यपु नामक एक दुष्ट राजा, उसकी शैतान बहन होलिका और राजा के पुत्र प्रह्लाद के इर्द-गिर्द घूमती है।

जैसा कि किंवदंती है, राजा हिरण्यकशिपु को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि वह मनुष्य या जानवर द्वारा, न दिन में या रात में, न अंदर या बाहर और न ही किसी गोला-बारूद से मारा जा सकता है। इससे राजा घमंडी हो गया और उसने सभी को आदेश दिया कि वह उसे ईश्वर मान ले और उसकी पूजा करे। हालाँकि, उनके पुत्र प्रह्लाद ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया क्योंकि वह एक विष्णु भक्त था और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। इससे राजा बहुत क्रोधित हो गया और उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए कहा।

होलिका को अग्नि से प्रतिरक्षित होने का वरदान प्राप्त था। इसलिए वह प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में उस के साथ एक अलाव में बैठ गयी। हालाँकि, भगवान विष्णु ने होलिका को मार दिया क्योंकि उसने खुद को जला दिया था और प्रह्लाद आग से बिना एक निशान के भी जीवित बाहर आ गया । सर्वशक्तिमान में विश्वास बहाल हो गया क्योंकि बुराई नष्ट हो गई और पुण्य जीत गया। यही कारण है कि यह त्योहार भगवान विष्णु के भक्तों के लिए असीम धार्मिक श्रद्धा रखता है।

होलिका दहन 2022 उत्सव समारोह (Holika Dahan 2022 )

  • होलिका दहन का उत्सव और तैयारी वास्तविक त्यौहार से कुछ दिन पहले शुरू होती है। लोग अलाव के लिए चिता तैयार करने के लिए दहनशील सामग्री, लकड़ी और अन्य आवश्यक चीजों को इकट्ठा करना शुरू करते हैं।
  • कुछ लोग चिता के ऊपर एक पुतला भी रखते हैं जो एक तरह से शैतान होलिका का प्रतीक है।
  • होली समारोह के पहले दिन की पूर्व संध्या पर, होलिका का प्रतीक चिता को जलाया जाता है जो कि बुराई के विनाश का प्रतीक है। लोग अलाव के चारों ओर गाते और नाचते हैं। कुछ लोग आग के आसपास ‘परिक्रमा’ भी करते हैं।
  • होलिका दहन होली समारोह का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बाद अगले दिन धुलंडी होती है। यह बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है और सभी संस्कृतियों के लोगों को एक साथ लाता है।

होलिका दहन की पौराणिक कथा (holika dahan story) | होलिका दहन की कहानी

होली से संबंधित मुख्य कथा के अनुसार एक नगर में हिरणकश्यप नाम का दानव राजा रहता था वह सभी को अपनी पूजा कराने को कहता था लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपवास था हिरण कश्यप ने भक्त प्रह्लाद को बुलाकर राम का नाम जपने को कहा। अपने को कहा तो प्रभात ने स्पष्ट रूप से कहा पिताजी पर परमात्मा ही असमर्थ है प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है मानव असमर्थ नहीं जाती कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति पर आत्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में से उत्तम खो जाता है परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता।

यह बात सुनकर हम कारी हिरणकश्यप क्रोध से लाल पीला हो गया और नौकरों सिपाहियों से बोला कि इसको ले जाओ मेरी आंखों के सामने से और जंगल में सांपों के बीच डाल दो  यहां मर जाएगा ऐसा ही किया गया परंतु पर हाथ मारा नहीं क्योंकि  सांपों ने नहीं काटा। प्रल्हाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षी ढूंढी राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पूर्ण जन्म से भी जुड़ा हुआ है कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर नाच गाकर लोग शिव को गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बरात का दृश्य बनाते हैं कुछ लोगों का यह भी माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन उतना नामक राक्षसी का वध किया था इसी खुशी में गोपियों और गांव वालों ने रामलीला की और रंग खेला  खेला था।

होलिका दहन का इतिहास (Why is fire lit on Holi Dahan night) | holika dahan story

होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

होलिका दहन पर मंत्र

नरसिंह मंत्र-1

नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने

हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो

यतो यतो यामि ततो नृसिंहः

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो

नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये

नरसिंह मंत्र-2

उग्रं वीरं महा विष्णुम ज्वलन्तम सर्वतो मुखम्

नृसिंहं भीभूतम् भद्रम मृत्युर्मृत्युम् नाम: अहम्

उग्र वीरम महा विष्णुम ज्वालां सर्वतो मुखम्

नृसिंहमं भेशंम् भद्रं मृत्योर्मित्यं नमाम्यहम्

होलिका दहन पर महालक्षमी मंत्र का जाप

मस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!

शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी!

सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!

सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!

मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

हम ‘होलिका दहन’ क्यों मनाते हैं? (Why we celebrate ‘Holika Dahan ?)

होली हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, होलिका दहन। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि भी कहा जाता है। कई अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है।होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसलिए हम होलीदहन का त्योहार ख़ुशी ख़ुशी मनाते है।

कौन थे प्रह्लाद, होलिका, हिरण्यकश्यप और नरसिंह? (Prahlad, Holika, Hiranyakashyap, and Narasimha)

हिरण्यकशिपु (Hiranyakashipu) एक दैत्य था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध नृसिंह अवतारी विष्णु द्वारा किया गया। यह “हिरण्यकरण वन” नामक स्थान का राजा था৷ हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे जिनके नाम हैं प्रह्लाद , अनुहलाद , सहलाद और हलाद जिनमें प्रह्लाद सबसे बड़ा और हलाद सबसे छोटा था। उसकी पत्नी का नाम कयाधु और उसकी छोटी बहन का नाम होलिका था। हिरण्यकशिपु के बड़े भाई का नाम हयग्रीव था जिसका वध मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने किया था।

विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार सतयुग के अन्त में महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। दिति के बड़े पुत्र हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया।

हिरण्यकशिपु के चार पुत्र थे उनके नाम थे प्रह्लाद , अनुहल्लाद , संहलाद और हल्लद थे। हिरण्यकशिपु का सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई।

अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र और उसका पेट चीर कर उसे मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकशिपु अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।

दक्षिण भारत में होती है विशेष पूजा

नरसिंह भगवान को पुराणों में भगवान विष्‍णु का अवतार माना गया है। जिनका सिर एवं धड़ तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे। दक्षिण भारत के वैष्‍णव संप्रदाय में भगवान नरसिंह को संकट में रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। दक्षिण भारत के साथ-साथ हरदोई जिले में बना नरसिंह भगवान का यह मंदिर के लक्षण एवं अद्वितीय है बताते चलें प्रभु के प्रकट होने का असली स्थान हरदोई ही है इस मंदिर के ठीक सामने ऊंचा थोक जिसे कभी हिरणाकश्यप का किला कहा जाता था बसा हुआ है।

अग्निपुंज की परिक्रमा

होली के संबंध एक और जनश्रुति है। प्राचीन काल में फागुन में पकी-गेहूं, जौ, चना अलसी आदि फसल का उपभोग करने के पूर्व किसान उसे अग्निदेव को समर्पित करते थे। आज भी अग्निपुंज की परिक्रमा करते हुए गेहूं, जौ, आदि को अग्नि में डालते हैं और होली माता तथा भक्त प्रह्लाद की जय बोलते हैं, अगले दिन रंग डालने और गालों पर गुलाल लगाने का कार्य बहुत ही उत्साह और उल्लास से होता है। शाम को लोग गले मिलते हैं और एक दुसरे को गुजिया खिलाते हैं। ये पर्व हमारी एकता और अखंडता को बल प्रदान करता रहा है।

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