MP News: प्रदेश की पहली सोलर सिटी अंधेरे में डूबी, केवल 20 घर में ही लगे सोलर पैनल
MP News: सांची स्तूप रोड और स्टेशन रोड पर लगाई गई सोलर स्ट्रीट लाइटें बंद पड़ी हैं। सांची की जिन सड़कों पर रोशनी बिखरनी थी, वहां अब अंधेरा पसरा है। सबसे बड़ी बात यह है कि सांची के 2000 घरों में से केवल 20 में ही सोलर पैनल लगाए गए हैं।

MP News: उज्जवल प्रदेश, रायसेन. प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटक स्थल रायसेन के सांची को प्रदेश की पहली सोलर सिटी का दर्जा दिया गया था, जो आज के समय में अंधेरे में डूबी नजर आ रही है। सांची में करोड़ों की लागत से बनाई गई इस परियोजना के बड़े-बड़े दावे आज सवालों के घेरे में हैं।
जानकारी के अनुसार सांची स्तूप रोड और स्टेशन रोड पर लगाई गई सोलर स्ट्रीट लाइटें बंद पड़ी हैं। सांची की जिन सड़कों पर रोशनी बिखरनी थी, वहां अब अंधेरा पसरा है। सबसे बड़ी बात यह है कि सांची के 2000 घरों में से केवल 20 में ही सोलर पैनल लगाए गए हैं। जो स्ट्रीट लाइट लगाई गई थी वे या तो बंद है या मामूली हवा से ही हिलने लगती है।
सांची में सोलर वाटर कूलर बने शोपीस
सांची में पांच स्थानों पर लगाए गए सोलर वाटर कूलर कभी शुरू ही नहीं हुए। रेलवे स्टेशन और स्तूप मार्ग, बस स्टैंड परिसर पर लगाए गए सोलर वाटर कूलर अब शोपीस बनकर रह गए हैं। स्टेशन रोड पर मौजूद एक सब्जी विक्रेता ने बताया कि “पूरी गर्मी निकल गई, लेकिन ठंडा पानी आज तक नसीब नहीं हुआ।
”सांची को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए ई-रिक्शा उपलब्ध कराए गए थे। एक बड़ा चार्जिंग स्टेशन भी बनाया गया था लेकिन आज ये ई-रिक्शा नगर परिषद के भंगारखाने में धूल खा रहे हैं। करोड़ों की लागत से खरीदी गई यह सुविधा उपयोग में आने से पहले ही कबाड़ बन चुकी है।
24 घंटे बिजली मिलने का दावा हुआ फेल
नागौरी पहाड़ी पर बने सोलर प्लांट पर 18 करोड़ 75 लाख खर्च किए गए। पहाड़ी को समतल करने में पांच साल लगे। दावा किया था कि शहर का मासिक बिजली बिल एक करोड़ रुपये से घटकर मामूली रह जाएगा। लेकिन हकीकत कुछ और है। दो साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने इस परियोजना का उद्घाटन किया था। उस वक्त भी दावा किया था कि सांची को 24 घंटे बिजली मिलेगी और लोगों को बिजली बिल से राहत मिलेगी। आज हालात यह है कि लाइटें नहीं, सिर्फ पोल दिखते हैं। जो पोल बचे वे भी जलने का इंतजार कर रहे है।
न रोशनी मिली, न ठंडा पानी
देश की पहली सोलर सिटी बनने का तमगा तो सांची को मिल गया, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि करोड़ों की योजनाएं केवल फाइलों में ही सफल नजर आ रही हैं। जनता को न रोशनी मिली, ठंडा पानी, न ही प्रदूषण मुक्त यातायात। अब सवाल उठता है कि आखिर इन योजनाओं का जिम्मेदार कौन है और जनता के करोड़ों रुपये का हिसाब कौन देगा।