अब भारत की सड़कों पर दौड़ेंगी ड्राइवरलेस कारें, सरकार ने दी 6G, AI और रडार टेक्नोलॉजी से लैस कारों को मंजूरी
Driverless Car: अब भारत भी भविष्य की सवारी की ओर कदम बढ़ा चुका है। सरकार ने बिना ड्राइवर की कार यानी ड्राइवरलेस व्हीकल के ट्रायल की अनुमति दे दी है। TRAI की सिफारिश पर टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम के प्रयोग को मंजूरी मिलने के बाद देश में नई तकनीक का रास्ता खुल गया है।

Driverless Car: उज्जवल प्रदेश डेस्क. भारत में ड्राइवरलेस कारों के ट्रायल को मंजूरी मिल गई है। सरकार ने TRAI की सिफारिश पर टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल की अनुमति दी है, जिससे देश में बिना ड्राइवर की ऑटोमेटिक कारों का परीक्षण संभव हो सकेगा। यह कदम भविष्य की तकनीक की ओर एक बड़ी पहल है।
टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम को मंजूरी मिलने के साथ भारत में जल्द ड्राइवरलेस कारों का ट्रायल शुरू होगा। यह स्पेक्ट्रम 6G, ऑटोमेटिव रडार और रोबोटिक रिसर्च के लिए अहम है। सरकार ने इसके लिए गाइडलाइंस जारी करने की तैयारी कर ली है, जिससे कंपनियों को ट्रायल की सुविधा मिल सके।
Driverless Car की ओर भारत का पहला कदम
भारत में अब ड्राइवरलेस कार का सपना हकीकत बनने जा रहा है। सरकार ने इस दिशा में एक बड़ा फैसला लेते हुए ट्रायल की अनुमति दे दी है। यह फैसला भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की सिफारिश पर आधारित है, जिसके तहत टेरा हर्ट्ज (THz) स्पेक्ट्रम के प्रयोग को मंजूरी मिल गई है।
क्या है टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम?
टेरा हर्ट्ज एक हाई-फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम है जिसकी सीमा 95 GHz से लेकर 3 THz तक होती है। यह स्पेक्ट्रम रोबोटिक्स, ऑटोमोटिव रडार, 6G ट्रायल और अब ड्राइवरलेस कारों की टेस्टिंग के लिए बेहद जरूरी है। इसका उपयोग सटीक डेटा ट्रांसमिशन और कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है, जो ऑटो ड्राइव कारों के लिए बेहद जरूरी है।
सरकारी मंजूरी का असर क्या होगा?
सूत्रों के अनुसार, सचिवों की समिति ने TRAI की सिफारिश पर टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम के प्रयोग को मंजूरी दी है। इस फैसले के बाद देश की सड़कों पर जल्द ही बिना ड्राइवर की कारें परीक्षण के रूप में देखी जा सकेंगी। इससे देसी और विदेशी वाहन निर्माता कंपनियों को भारत में नई तकनीकों का परीक्षण करने की सुविधा मिलेगी।
फीस और गाइडलाइंस क्या होंगी?
डिजिटल कम्युनिकेशन कमीशन (DCC) ने तय किया है कि टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर काम करने के लिए कंपनियों को प्रति उपयोग 1,000 रुपये शुल्क देना होगा। साथ ही, रजिस्ट्रेशन की अलग से प्रक्रिया होगी जिसके तहत कंपनियों को पांच साल के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट की अनुमति मिल सकेगी। सरकार जल्द ही इस स्पेक्ट्रम के लिए विस्तृत गाइडलाइंस भी जारी करेगी।
कैसे काम करती हैं ड्राइवरलेस कारें?
ड्राइवरलेस कारें सेंसर, कैमरा, रडार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से खुद-ब-खुद चलती हैं। ये कारें अपने आसपास के वातावरण को पहचानती हैं और उसी अनुसार निर्णय लेती हैं, जैसे कि ब्रेक लगाना, मोड़ लेना या रुकना।
टेस्ला जैसी कंपनियां पहले ही इस तकनीक को दुनिया भर में सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर रही हैं। अब भारत भी इस क्षेत्र में कदम रख रहा है।
Driverless कारों के फायदे
1. दुर्घटनाओं में कमी: इंसानी गलती की संभावना कम होती है।
2. यातायात नियंत्रण बेहतर: स्मार्ट नेविगेशन सिस्टम ट्रैफिक को सही तरीके से मैनेज करता है।
3. समय की बचत: कारें ट्रैफिक सिग्नल और रास्ते की स्थिति को समझकर ऑप्टिमम स्पीड पर चलती हैं।
4. ईंधन की बचत: स्मूथ ड्राइविंग से फ्यूल एफिशिएंसी बढ़ती है।
5. इंटरनेट कनेक्टिविटी: रियल टाइम डेटा, लोकेशन और गूगल मैप जैसी सुविधाएं सीधे सिस्टम से जुड़ती हैं।
भारत के लिए क्या हैं चुनौतियां?
हालांकि ड्राइवरलेस कारें भविष्य की तकनीक हैं, लेकिन भारत जैसे देश में इन्हें लागू करने में कुछ चुनौतियां भी होंगी-
- ट्रैफिक सिस्टम का असंगठित होना
- सड़क की खराब हालत
- डेटा कनेक्टिविटी की अनियमितता
- सुरक्षा नियमों की स्पष्टता का अभाव
इन चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार और कंपनियों को मिलकर काम करना होगा।
किन कंपनियों को होगा फायदा?
इस फैसले के बाद टेस्ला, हुंडई, टोयोटा, महिंद्रा, टाटा मोटर्स और ओला जैसी कंपनियां भारत में अपने ड्राइवरलेस प्रोटोटाइप्स को टेस्ट कर सकेंगी। साथ ही, कई स्टार्टअप्स को भी इस क्षेत्र में इनोवेशन का मौका मिलेगा।
क्या कहता है सरकार का विजन?
सरकार का उद्देश्य है कि डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया मिशन को बढ़ावा मिले। टेरा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम के जरिए न सिर्फ ऑटो सेक्टर में बल्कि संचार, रक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भी नई क्रांति लाई जा सकती है।