लोसर महोत्सव 2022: जाने तिब्बती कब मनाते है नव वर्ष, जाने Losar Festival 2022 त्यौहार के बारे में…
लोसार तिब्बती बौद्ध धर्म में एक त्योहार है। स्थान परंपरा के आधार पर विभिन्न तिथियों पर अवकाश मनाया जाता है। लोसर मतलब नया साल । ये फेस्टिवल या तो फरवरी के अंत मे या मार्च के शुरू मे पड़ता है ।
Losar Festival 2022 : परंपराओं के अनुसार, 15 दिनों तक चलने वाला यह लोसर उत्सव नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और लुनीसोलर तिब्बती कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है। लोसर महोत्सव कहाँ मनाया जाता है: (losar festival is celebrated in which state) जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में लोसर का त्यौहार पारंपरिक और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म में आयोजित सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो तिब्बत, नेपाल, भूटान जैसे अलग -अलग स्थानों पर बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
लोसर महोत्सव 2022 दौरान, लोग अपने जीवन में धन, समृद्धि और आनंद के साथ नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। यह त्यौहार सांस्कृतिक कार्यक्रमों, अनुष्ठानों का एक अविश्वसनीय मेलजोल है जो युगों से चला आ रहा है। पर्यटकों के लिए लोसर महोत्सव में भाग लेना जीवन भर का अनुभव बन जाता है। आमतौर पर यह महोत्सव जनवरी और मार्च के महीनों में मनाया जाता है।
उत्सव की शुरुआत मठों, स्तूपों, आवासीय और अन्य स्थानों जैसे धार्मिक स्थानों की रोशनी के साथ जन्म और निर्वाण वर्षगांठ जे चोंखापा के उत्सव के साथ हुई। लोसर त्योहार की पूर्व संध्या भी दिवंगत प्रियजनों के लिए स्मारक भोजन प्रसाद के साथ मनाई जाती है।
इस बार लद्दाख में लोसर त्यौहार पर कोरोना से उपजे हालात का असर दिखा। लोगों ने अपने रिश्तेदारों, पड़ौसियों व दोस्तों के घरों पर जाने के बजाए टेलीफोन पर ही त्यौहार की खुशियां साझा की। पहले इस त्यौहार के दिन लद्दाख में लोग अपने रिश्तेदारों, पड़ौसियों व दोस्तों के घरों पर जाकर एक दूसरे के साथ त्यौहार मनाया करते थे। अब कोरोना के कारण लोगों ने इस त्यौहार को अपने परिवार के साथ ही मनाया।
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monastery के बाहर भगवान् बुद्ध की प्रतिमा को एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया था और यहां पर सबसे पहले बुद्ध की मूर्ति की सामने दिया जलाया गया था ।क्यूंकि इस फेस्टिवल की शुरुआत सबसे पहले दिए जला कर की जाती है । और उसके बाद prayer flags को बाँधा जाता है । जिस समय इन flags को ऊपर किया जाता है उस समय flour को हाथ मे लेकर जोर जोर से बोलते है — लहा सो लो ,की की सो सो लहा ग्यल लो ( may the gods be victorious मतलब भगवान की जीत हो )और flour को आसमान की तरफ उछालते है ।
लोसर उत्सव का इतिहास | लोसर महोत्सव कहाँ मनाया गया
इस त्योहार की जड़ें बॉन धर्म से केंद्रित हैं और यहां तक कि लोसर उत्सव की जड़ में एक मनोरंजक कहानी है। कहानी के अनुसार, एक बार, जमैया नामग्याल नाम का एक राजा एक अभियान पर निकल रहा था, जो सर्दियों के समय में बलती सेनाओं के खिलाफ था। हालांकि, उन्हें संतों द्वारा अगले वर्ष से पहले इस तरह के अभियान का नेतृत्व नहीं करने की सलाह दी गई थी। इसलिए, ऋषियों की सलाह को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने नए साल के उत्सव को दो महीने तक रोक दिया। और तब से, इन समारोहों को लोसर समारोह के रूप में जाना जाता है।
दूसरे किस्से के अनुसार, प्राचीन काल में हर साल एक आध्यात्मिक समारोह आयोजित किया जाता था। इस समारोह के दौरान, लोग स्थानीय देवताओं को धूप / अगरबत्ती चढ़ाते थे। अनुष्ठान और समारोहों का उद्देश्य स्थानीय देवताओं और आत्माओं को भक्ति और प्रार्थना के साथ जीतना था और बाद में इतिहास में, लोसर महोत्सव के रूप में मनाए जाने लगा।
तीसरे किस्से के अनुसार, लद्दाखी इतिहास के अनुसार जब क्षेत्र के राजा जामयांग नाम्गयाल ने बाल्टीस्तान पर चढ़ाई की तैयारी की तो उन्हें सलाह दी गई कि नया साल मनाए बिना दुश्मन पर चढ़ाई करना अशुभ होगा। ऐसे में उन्होंने वक्त से पहले ही नर्व वर्ष मनाने के बाद ही दुश्मन पर हमला किया। लोसर मनाने की इस परंपरा को आज भी कायम रखा गया है। ऐसे में लद्दाख में लोसर के त्योहार के उपलक्ष्य में त्यौहार मनाने का सिलसिला दिसंबर महीने से ही हो जाता है। यह कार्यक्रम पंद्रह दिन तक चलते हैं व अंतिम दिन में लोसर मनाया जाता है। लोसर पर लद्दाख के मठों में विशेष प्राथनाएं भी की गई।
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लोसर महोत्सव के मुख्य आकर्षण
तैयारी. जब लोसर समारोहों का समय आने वाला होता है, तो स्थानीय लोग बड़े उत्साह के साथ जश्न की तैयारियों में डूब जाते हैं। इस तैयारी में मुख्य रूप से नृत्य प्रदर्शन, गायन प्रदर्शन, मठों की सजावट और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों की तैयारी करना शामिल होता है। इसके अलावा, लोग अपने घर में पड़े अनावश्यक पुराने सामान को त्यागते हुए अपने घरों की सफाई करना शुरू कर देते हैं।
उत्सव. यह उत्सव सुबह से ही शुरू होता है। लोग धर्म के रक्षक के रूप में माने जाने वाले देवी पाल्डेन ल्हामो को धार्मिक प्रसाद चढ़ाते हैं। इस त्योहार के दौरान, घर रोशनी और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजा होता है। सभी सजावटें घरों को बेहद जीवंत और आकर्षक बनाती हैं।
परिचितों से मिलना और मेथो जुलूस
इस त्योहार के अवसर पर, घर के छोटे सदस्य अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने के लिए बाहर जाते हैं। इसके अलावा लोग अपने प्रियजनों के साथ उपहारों का आदान-प्रदान भी करते हैं। शाम के समय एक अग्नि जुलूस निकाला जाता है, जिसका नाम ‘मेथो’ होता है। बुरी आत्माओं को दूर रखने और चारों ओर सकारात्मकता लाने के लिए लोग पवित्र नारे भी लगाते हैं। जुलूस के दौरान लोग जिन मशालों को ले जाते हैं, उन्हें उसके अंत में क्षेत्र से बाहर फेंक दिया जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से नए साल का नए उत्साह के साथ स्वागत करते हुए बुराई को दूर रखने को दर्शाता है।
लद्दाख के अन्य लोकप्रिय त्योहार:
- फ्यांग त्सेडुप महोत्सव
- दोस्मोचे महोत्सव
- हेमिस महोत्सव